Tuesday, November 22, 2016

अध्याय-6, श्लोक-26

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्‌ ।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्‌ ॥ २६ ॥
मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण करता हो, मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए।
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मन का स्वभाव ही ऐसा है क़ि 
वह अक्सर यहाँ-वहाँ भागता है।
चंचलता उसमें सहज ही होती 
वह कभी स्थिर नहीं रह पाता है।।

पर मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह 
भागते मन को खींच कर लाए।
यहाँ-वहाँ भटकने के बदले उसे 
अपनी आत्मा में ही स्थिर कराए।।

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