Sunday, November 27, 2016

अध्याय-6, श्लोक-40

श्रीभगवानुवाच
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥ ४० ॥
भगवान ने कहा-हे पृथापुत्र! कल्याण-कार्यों में निरत योगी का न तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है। हे मित्र! भलाई करनेवाला कभी बुराई से पराजित नहीं होता।
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भगवान ने कहा कि असफल योगी
का पूर्व कर्म कभी बेकार न होता।
न ही इस जन्म में,न अगले जन्म में
कभी भी उसका विनाश न होता।।

हे पार्थ! कल्याण-कार्य में था कल
और आज अगर पथ से भटक गया।
फिर भी उसका कल्याण होगा मित्र
क्या हुआ आधे रास्ते वह रह गया।।

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