Tuesday, November 22, 2016

अध्याय-6, श्लोक-29

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ २९ ॥
वास्तविक योगी समस्त जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है। निस्सन्देह स्वरूपसिद्ध व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है।
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योग में पूरी तरह स्थित मनुष्य की 
देखने की प्रकृति ही बदल जाती है।
उसकी दृष्टि सबमें में परमात्मा और 
परमात्मा में सबके दर्शन कराती है।।

यही होती है पहचान उस योगी की 
जिसने आत्म तत्त्व को जान लिया है।
संसार के सभी  प्राणियों में जिसने 
एक ही परमात्मा का दर्शन किया है।।

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