अर्जुन उवाच
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥ ३३ ॥
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥ ३३ ॥
अर्जुन ने कहा-हे मधुसूदन! आपने जिस योगपद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है वह मेरे लिए अव्यवहारिक तथा असहनीय है, क्योंकि मन चंचल तथा अस्थिर है।
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अर्जुन बोले मधुसूदन से कि मुझे
जिस योग को आपने समझाया।
संयम और समभाव का जो मार्ग
आपने अभी है मुझको बतलाया।।
मेरे लिए तो उस मार्ग पर चलना
प्रभु मुझे सम्भव-सा नहीं लगता है।
क्योंकि मेरा चंचल मन कभी भी
अधिक समय स्थिर नहीं रहता है।।
जिस योग को आपने समझाया।
संयम और समभाव का जो मार्ग
आपने अभी है मुझको बतलाया।।
मेरे लिए तो उस मार्ग पर चलना
प्रभु मुझे सम्भव-सा नहीं लगता है।
क्योंकि मेरा चंचल मन कभी भी
अधिक समय स्थिर नहीं रहता है।।
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