Sunday, November 20, 2016

अध्याय-6, श्लोक-17

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥ १७ ॥
जो खाने-सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है।
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खाने, पीने, सोने हर काम में 
जो सदा ही नियमित रहता है।
आमोद-प्रमोद हो या कर्त्तव्य 
हर कार्य ही नियम से करता है।।

ऐसा अनुशासित व्यक्ति ही तो  
योग का अभ्यास कर पाता है।
योगाभ्यास द्वारा वह अपने सारे 
क्लेशों को दूर कर सकता है।।

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