Monday, November 14, 2016

अध्याय-5, श्लोक-19

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ॥
जिनके मन एकत्व तथा समता में स्थित हैं उन्होंने जन्म तथा मृत्यु के बंधनों को पहले ही जीत लिया है। वे ब्रह्म के समान निर्दोष हैं और सदा ब्रह्म में ही स्थित रहते हैं।
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देखें सबको एक समान और 
हर जीव में जाने परमात्मा को।
जन्म-मृत्यु का बंधन भी फिर 
बाँध न पाए उन आत्माओं को।।

संसार के दोषों से कोशों दूर वे 
ब्रह्म के समान  निर्दोष होते हैं।
सांसारिक परपंचों से ऊपर उठे 
वे सदा ब्रह्म में ही स्थित रहते हैं।।

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