न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ १४ ॥
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ १४ ॥
शरीर रूपी नगर का स्वामी जीवात्मा न तो कर्म का सृजन करता है, न लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है, न ही कर्मफल की रचना करता है। यह सब तो प्रकृति के गुणों के द्वारा ही किया जाता है।
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देह में रहता है जीवात्मा पर
वह देह का कर्त्ता नहीं होता।
न ही कोई कर्म उत्पन्न करता
न ही वह कर्मफल को रचता।
ये जितने भी कर्म होते हैं यहाँ
और जो भी परिणाम दिखते हैं।
वे सब-के-सब प्रकृति के तीन
गुणों द्वारा संचालित होते हैं।।
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