Friday, November 11, 2016

अध्याय-5, श्लोक-1

अर्जुन उवाच
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्‌ ॥ १ ॥
अर्जुन ने कहा-हे कृष्ण! पहले आप मुझसे कर्म त्यागने के लिए कहते हैं और फिर भक्तिपूर्वक कर्म करने का आदेश देते हैं। क्या आप अब कृपा करके निश्चित रूप से मुझे बतायेंगे कि इन दोनों में से कौन अधिक लाभप्रद है?
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अर्जुन पूछते प्रभु से कि पहले आप 
कर्म के त्याग को बेहतर कहते हैं।
फिर हे कृष्ण! आप ही भक्तिपूर्वक 
किए गए कर्म की प्रशंसा करते हैं।।

दोनों मार्ग आपके द्वारा अनुमोदित
फिर किस मार्ग का मनुष्य चयन करे।
इनमें कौन है अधिक कल्याणप्रद  
कृपा कर आप मेरा मार्गदर्शन करें।।

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