योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ ४७ ॥
******ध्यानयोग नाम का छठा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ ४७ ॥
और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यंत श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अंतःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अंतरंग रूप से युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है। यही मेरा मत है।
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सभी प्रकार के योगियों में जो
मुझमें पूरी तरह श्रद्धा रखता है।
मुझ पर ही आश्रित रहता और
सदा मेरा ही चिंतन करता है।।
मुझसे प्रेम और मेरी भक्ति में ही
जिसका सारा जीवन बितता है।
मेरी दृष्टि में ऐसा योगी ही सारे
योगियों में परम योगी होता है।।
******ध्यानयोग नाम का छठा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
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