Tuesday, November 29, 2016

अध्याय-7, श्लोक-4

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्‍कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ ४ ॥
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार - ये आठ प्रकार से विभक्त मेरी भिन्ना (अपरा) प्रकृतियाँ हैं।
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पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और 
आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार।
ये ही हैं इस भौतिक सृष्टि के 
प्राकट्य के मूल आठ प्रकार।।

जड़ हैं ये आठों तत्त्व फिर भी 
कोई भी मुझसे अलग नहीं हैं।
ये भी मेरी ही प्रकृतियाँ है पर 
भौतिक है सब, दिव्य नहीं है।।

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