Saturday, November 19, 2016

अध्याय-6, श्लोक-15

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥ १५ ॥
इसप्रकार शरीर, मन तथा कर्म में निरंतर संयम का अभ्यास करते हुए संयमित मन वाले योगी को इस भौतिक अस्तित्व की समाप्ति पर भगवद्धाम की प्राप्ति होती है।
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इसप्रकार शरीर से अपने जो 
निरंतर अभ्यास करता रहता।
मन को अपने हमेशा ही वह 
परमात्मा में ही स्थिर रखता।।

परम शांति को प्राप्त कर चुका 
ऐसा संयमित योगी जो होता।
सांसारिक बंधन से मुक्त होकर  
वह भगवद्धाम अवश्य ही जाता।।

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