प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः ।
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो यात परां गतिम् ॥ ४५ ॥
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो यात परां गतिम् ॥ ४५ ॥
और जब योगी समस्त कल्मष से शुद्ध होकर सच्ची निष्ठा से आगे प्रगति करने का प्रयास करता है, तो अंततोगत्वा अनेकानेक जन्मों के अभ्यास के पश्चात सिद्धि-लाभ करके वह परम गंतव्य को प्राप्त करता है।
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व्यर्थ नहीं जाता कभी भी उसके
अनेकों जन्मों का किया अभ्यास।
और पाप कर्मों से शुद्ध कर देता
इस जन्म में किया गया प्रयास।।
अभ्यास और प्रयास से वह योगी
अंततः परम सिद्धि पा ही जाता है।
पथ उसका आख़िरकार उसे फिर
गंतव्य तक अवश्य ही पहुँचाता है।।
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