Thursday, November 10, 2016

अध्याय-4, श्लोक-36

अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥ ३६ ॥ 
यदि तुम्हें समस्त पापियों से भी सर्वाधिक पापी समझा जाये तो भी तुम दिव्यज्ञान रूपी नाव में स्थित होकर दुःख-सागर को पार करने में समर्थ होगे।
**********************************
अगर तुम्हें समस्त पापियों में भी 
सबसे बड़ा पापी भ समझा जाए।
तो भी ज्ञान में होती इतनी शक्ति 
जो हर पाप से छुटकारा दिलाए।।

अगर तुम दिव्य-ज्ञान की नौका 
को अपने जीवन में अपनाओगे।
तो तुम निश्चित ही इस दुःख के 
भव सागर को पार कर जाओगे।।

No comments:

Post a Comment