अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥ ३६ ॥
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥ ३६ ॥
यदि तुम्हें समस्त पापियों से भी सर्वाधिक पापी समझा जाये तो भी तुम दिव्यज्ञान रूपी नाव में स्थित होकर दुःख-सागर को पार करने में समर्थ होगे।
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अगर तुम्हें समस्त पापियों में भी
सबसे बड़ा पापी भ समझा जाए।
तो भी ज्ञान में होती इतनी शक्ति
जो हर पाप से छुटकारा दिलाए।।
अगर तुम दिव्य-ज्ञान की नौका
को अपने जीवन में अपनाओगे।
तो तुम निश्चित ही इस दुःख के
भव सागर को पार कर जाओगे।।
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