नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥ ३१ ॥
हे कुरुश्रेष्ठ! जब यज्ञ के बिना मनुष्य इस लोक में या इस जीवन में ही सुखपूर्वक नहीं रह सकता, तो फिर अगले जन्म में कैसे रह सकेगा?
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हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! जो मनुष्य जीवन में
कभी किसी प्रकार का यज्ञ नही करता।
उसके तो इस जीवन में ही सुख नही है
फिर अगले जन्म में कैसे मिल सकता?
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