Wednesday, November 9, 2016

अध्याय-4, श्लोक-31


नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥ ३१ ॥
हे कुरुश्रेष्ठ! जब यज्ञ के बिना मनुष्य इस लोक में या इस जीवन में ही सुखपूर्वक नहीं रह सकता, तो फिर अगले जन्म में कैसे रह सकेगा?
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हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! जो मनुष्य जीवन में 
कभी किसी प्रकार का यज्ञ नही करता।
उसके तो इस जीवन में ही सुख नही है  
फिर अगले जन्म में कैसे मिल सकता?

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