Saturday, November 12, 2016

अध्याय-5, श्लोक-7

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः ।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥ ७ ॥
जो भक्तिभाव से कर्म करता है, जो विशुद्ध आत्मा है और अपने मन तथा इंद्रियों को वश में रखता है, वह सबों को प्रिय होता है और सभी लोग उसे प्रिय होते हैं। ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी कभी नहीं बँधता।
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शुद्ध आत्मा होते हैं, वे इंद्रियों को 
सदा ही अपने नियंत्रण में रखते हैं।
उनका मन उन्हें नहीं चलाता कभी 
वे मन को अपने अनुसार चलाते हैं।।

भक्ति भाव में मन स्थित रहता उनका  
सबका प्रिय वो,सब उनके प्रिय होते।
इस तरह अपने सारे कार्यों को करते  
फिर भी किसी कर्म में नहीं वे बँधते।।

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