तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः ।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥ ४६ ॥
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥ ४६ ॥
योगी पुरुष तपस्वी से, ज्ञानी से तथा सकामकर्मी से बढ़कर होता है। अतः हे अर्जुन! तुम सभी प्रकार से योगी बनो।
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योग के पथ पर चलने वाला
तपस्वियों से बेहतर है होता।
शास्त्र ज्ञान में लगा जो ज्ञानी
वह भी योगी से पीछे ही होता।।
सकाम कर्म में फँसे मनुष्य तो
योगी से श्रेष्ठ हो ही नहीं सकते।
इसलिए हे अर्जुन! तुम भी इस
योग के पथ पर क्यूँ नहीं चलते।।
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