Thursday, November 10, 2016

अध्याय-4, श्लोक-32

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥ ३२ ॥
ये विभिन्न प्रकार के यज्ञ वेद-सम्मत हैं और ये सभी विभिन्न प्रकार के कर्मों से उत्पन्न हैं। इन्हें इस रूप में जानने पर तुम मुक्त हो जाओगे।
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इन विभिन्न प्रकार के यज्ञों को 
हमारे शास्त्रों ने सही बताया है।
विभिन्न कर्मों से होते हैं उत्पन्न 
यह भी वेदों ने हमें समझाया है।।

यज्ञों और कर्मों के संबंध को जब 
तुम सही तरह से  समझ पाओगे।
तो फिर इस ज्ञान के कारण तुम 
कर्म-बंधन से मुक्त हो जाओगे।।

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