श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥ २६ ॥
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥ २६ ॥
इनमें से कुछ (विशुद्ध ब्रह्मचारी) श्रवणादि क्रियाओं तथा इंद्रियों को मन की नियंत्रण रूपी अग्नि में स्वाहा कर देते हैं तो दूसरे लोग (नियमित गृहस्थ) इन्द्रियविषयों को इंद्रियों की अग्नि में सवहा कर देते हैं।
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जो लोग ब्रह्मचारी होते हैं वे तो
मन को अपने नियंत्रित हैं रखते।
सभी ज्ञान इंद्रियों के विषयों को
नियंत्रण की अग्नि में हवन करते।।
कुछ लोग जो होते हैं गृहस्थी में
वे भी नियमित जीवन ही जीते।
वे भी नियमित जीवन ही जीते।
इन्द्रिय रूपी अग्नि में वे अपने
इन्द्रिय विषयों को आहुत करते।।
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