Tuesday, November 8, 2016

अध्याय-4, श्लोक-24

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्रौ ब्रह्मणा हुतम्‌ ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥ २४ ॥
जो व्यक्ति कृष्णभावनामृत में पूरी तरह लीन रहता है, उसे अपने आध्यात्मिक कर्मों के योगदान के कारण अवश्य ही भगवद्धाम की प्राप्ति होती है, क्योंकि उसमें हवन आध्यात्मिक होता है और हवि भी आध्यात्मिक होता है।
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जो व्यक्ति ब्रह्म ज्ञान में है स्थित
उसका लक्ष्य तो ब्रह्म ही होता है।
अपने सारे ही कर्मों को वह अब  
बस ब्रह्म को ही समर्पित करता है।।

आध्यात्मिक चेतना के स्तर इस पर
हर कार्य ब्रह्म से ही जुड़ा होता है।
यज्ञ, अग्नि, कर्त्ता, हवन और फल
ब्रह्म से अलग कुछ नहीं होता है।।

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