योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥ १० ॥
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥ १० ॥
योगी को चाहिए कि वह सदैव अपने शरीर, मन तथा आत्मा को परमेश्वर में लगाए, एकांत स्थान में रहे और बड़ी सावधानी के साथ अपने मन को वश में करे। उसे समस्त आकांक्षाओं तथा संग्रहभाव की इच्छाओं से मुक्त होना चाहिए।
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योगी तो तन, मन और आत्मा से
सदा परमेश्वर में ही ध्यान लगाए ।
एकांत में रहकर मन को यूँ साधे
कि मन वही करे जो वो बताए।।
कुछ भी पाने की लालसा न हो
जग का आकर्षण लुभा न पाए।
किसी वस्तु को संग्रह करने की
इच्छा भी उसके मन में न आए।।
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