प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः ।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥ ४१ ॥
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥ ४१ ॥
असफल योगी पवित्रात्माओं के लोकों में अनेकानेक वर्षों तक भोग करने के बाद या तो सदाचारी पुरुषों के परिवार में या धनवानों के कुल में जन्म लेता है।
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असफल योगी पहले उत्तम लोक
असफल योगी पहले उत्तम लोक
में जा उन इच्छाओं को भोगता है।
जिन इच्छाओं के पीछे पड़कर ही
वह योगपथ से च्यूत हुआ होता है।।
अनेकों वर्षों के भोग के बाद उसे
फिर से एक अवसर दिया जाता है।
किसी सम्पन्न परिवार में या किसी
सदाचारी के घर वह जन्म पाता है।।
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