आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥ ३२ ॥
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥ ३२ ॥
हे अर्जुन! वह पूर्णयोगी है जो अपनी तुलना से समस्त प्राणियों को उनके सुखों तथा दुखों में वास्तविक समानता का दर्शन करता है।
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हे अर्जुन! जो मनुष्य दूसरों की
भावनाओं को भी समझता है।
सबकी पीड़ा और सबके दुःख
जिसे अपने समान ही लगता है।।
समस्त प्राणियों के सुख-दुःख
जिसके लिए होता एक समान।
यही सब गुण ही कराते हैं उसके
एक पूर्ण योगी होने की पहचान।।
हे अर्जुन! जो मनुष्य दूसरों की
भावनाओं को भी समझता है।
सबकी पीड़ा और सबके दुःख
जिसे अपने समान ही लगता है।।
समस्त प्राणियों के सुख-दुःख
जिसके लिए होता एक समान।
यही सब गुण ही कराते हैं उसके
एक पूर्ण योगी होने की पहचान।।
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