Wednesday, November 16, 2016

अध्याय-5, श्लोक-29

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ २९ ॥
मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परम भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावमृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शांति लाभ करता है।
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सारे यज्ञों और तपस्याओं का 
मुझे परम भोक्ता जो जानता है। 
सभी लोकों और देवताओं, इन  
सबका मुझे स्वामी मानता है।।

पता है जिसे मेरी प्रकृति का कि 
मैं सबका ही सदा हितैषी रहता।
मेरी दयालुता को समझनेवाला  
परम शांति अवश्य प्राप्त करता।।

******कर्मयोग-कृष्णभावनाभावित कर्म नाम का पाँचवा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******

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