Monday, November 21, 2016

अध्याय-6, श्लोक-24

स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ।
सङ्‍कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः ।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः ॥ २४ ॥ 
मनुष्य को चाहिए कि संकल्प तथा श्रद्धा के साथ योगाभ्यास में लगे और पथ से विचलित न हो। उसे चाहिए क़ि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाओं को निरपवाद रूप से त्याग दे और इस प्रकार मन के द्वारा सभी ओर से इंद्रियों को वश में करें।
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मनुष्य को दृढ़ विश्वास के साथ 
योग का अभ्यास करना चाहिए।
संसार से मिलने वाले दुखों से 
उसे विचलित नहीं होना चाहिए।।

मन में उठनेवाली सभी सांसारिक 
इच्छाओं को पूरी तरह त्याग करे।
योगी का कर्त्तव्य है कि वह अपने 
मन द्वारा इंद्रियों को वश में रखे।।

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