Thursday, November 10, 2016

अध्याय-4, श्लोक-40

अज्ञश्चश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥ ४० ॥
किंतु जो अज्ञानी तथा श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्त्रों में संदेह करते हैं, वे भगवदभावनामृत नहीं प्राप्त करते, अपितु नीचे गिर जाते हैं। संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है।
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जिसे न कोई ज्ञान शास्त्रों का
न ही उसकी श्रद्धा इन सबमें।
उल्टा शंका करता शास्त्रों में 
संशय नही उसके भ्रष्ट होने में।।

ऐसा भटका व्यक्ति सदा ही 
संशयग्रस्त ही रह जाता है।
न इस लोक में न परलोक में 
उसे सुख प्राप्त हो पाता है।।

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