Tuesday, November 8, 2016

अध्याय-4, श्लोक-27

सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।
आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥ २७ ॥
दूसरे, जो मन तथा इंद्रियों को वश में करके आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं, सम्पूर्ण इंद्रियों तथा प्राणवायु के कार्यों को संयमित मन रूपी अग्नि में आहुति कर देते हैं।
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कुछ ऐसे मनुष्य होते हैं यहाँ  जो 
आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं।
इसके लिए वे सर्वप्रथम अपनी 
इंद्रियों को अपने वश में करते हैं।।

फिर अपने संयमित मन के द्वारा वे  
आत्म-ज्ञान के पथ पर हैं बढ़ पाते।
प्राणवायु के कार्यों को आहुत बना
आत्म-योग रूपी अग्नि को चढ़ाते।।

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