तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः ।
छित्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥ ४२ ॥
छित्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥ ४२ ॥
अतएव तुम्हारे हृदय में अज्ञान के कारण जो संशय उठे हैं उन्हें ज्ञानरूपी शस्त्र से काट डालो। हे भारत! तुम योग से समन्वित होकर खड़े होओ और युद्द करो।
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अज्ञान के कारण तुम्हारे हृदय में
भाँति-भाँति के संशय उठे हैं जो।
ज्ञान की तलवार पकड़कर उन
संशयों को तुम आज काट दो।।
ज्ञान से विभूषित होकर अब तुम
किसी संशय को मन मन न धरो।
योग में स्थित हो खड़े हो जाओ
हे भरतवंशी! बस तुम युद्ध करो।।
******दिव्य ज्ञान नाम का चौथा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
******दिव्य ज्ञान नाम का चौथा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
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