युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः ।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥ २८ ॥
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥ २८ ॥
इस प्रकार योगाभ्यास में निरंतर लगा रहकर आत्मसंयमी योगी समस्त भौतिक कल्मष से मुक्त हो जाता है और भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परम सुख प्राप्त करता है।
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इस तरह जो योगी सदा ही
योगाभ्यास में लगा रहता है।
मन, इंद्रियों को वश में कर
वह आत्मसंयमी हो जाता है।।
भौतिक क्लेशों से मुक्त होकर
परमात्मा से संबंध वो बनाता है।
इस संबंध के बाद दिव्य प्रेम
स्वरूप परम आनंद को पाता है।।
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