Wednesday, November 9, 2016

अध्याय-4, श्लोक-29

अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे ।
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ।
अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति ॥ २९ ॥
अन्य लोग भी हैं जो समाधि में रहने के लिए श्वास को रोके रहते हैं (प्राणायाम)। वे अपान में प्राण को और प्राण में अपान को रोकने का अभ्यास करते हैं और अंत में प्राण-अपान को रोककर समाधि में रहते हैं। अन्य योगी काम भोजन करके प्राण की प्राण में ही आहुति देते हैं।
*****************************************
कुछ ऐसे भी मनुष्य होते  हैं जो 
प्राणायाम का अभ्यास करते हैं।
समाधि में रहने के लिए वे लोग 
श्वासों की गति नियमित रखते हैं।।

कुछ लोग अभ्यास करते हैं प्राण 
वायु में अपान वायु को रोकने का।
तो कुछ करते अभ्यास अपान वायु
में प्राण वायु को अर्पित करने का।।

कुछ लोग प्राण और अपान दोनों 
वायु को रोक समाधि में रहते हैं।
कुछ भोजन कम कर प्राण वायु 
को प्राण वायु में ही हवन करते हैं।।

No comments:

Post a Comment