Tuesday, November 15, 2016

अध्याय-5, श्लोक-23

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्‌ ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥ २३ ॥
यदि इस शरीर को त्यागने के पूर्व कोई मनुष्य इंद्रियों के वेगों को सहन करने तथा इच्छा एवं क्रोध के वेग को रोकने में समर्थ होता है, तो वह संसार में सुखी रह सकता है।
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शरीर का अंत हो इससे पहले 
संयमित रहना सीख लिया है।
काम-क्रोध के वगों को जिसने 
पूरी तरह अपने वश में किया है।।

ऐसा व्यक्ति जग में रहकर भी 
योगी की तरह निर्लिप्त होता है।
दुःख से भरी इस दुनिया में भी 
वह सुख-शांति से रह सकता है।।

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