Tuesday, November 8, 2016

अध्याय-4, श्लोक-25

दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।
ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥ २५ ॥
कुछ योगी विभिन्न प्रकार के यज्ञों द्वारा देवताओं की भलीभाँति पूजा करते हैं और कुछ परब्रह्म रूपी अग्नि में आहुति डालते हैं।
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कुछ मनुष्य अनेक प्रकार से
देवताओं की पूजा करते हैं।
भिन्न-भिन्न यज्ञों के द्वारा वे
देवताओं को प्रसन्न रखते हैं।

पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो
परब्रह्म का ही ध्यान करते हैं।
अपनी ध्यान रूपी आहुति से
वे यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं।।

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