ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥ २२ ॥
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥ २२ ॥
बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों में भाग नही लेता जो कि भौतिक इंद्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं। हे कुंतिपुत्र! ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है, अतः चतुर व्यक्ति उनमें आनंद नही लेता।
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इंद्रियों और उसके विषयों से उपजा
सुख, दुःख का ही कारण होता है।
प्रारम्भ में कितना भी सुखकर लगे
पर अंत में सदा वह दुःख ही देता है।।
इंद्रियों से मिलने वाले इन भोगों का
मिलना और छूटना लगा ही रहता।
हे कुंतिपुत्र! बुद्धिमान वही जो कभी
क्षणिक भोगों में आनंद नहीं लेता।।
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