Wednesday, November 9, 2016

अध्याय-4, श्लोक-28

द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे ।
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥ २८ ॥
कठोर व्रत अंगीकार करके कुछ लोग अपनी सम्पत्ति का त्याग करके, कुछ कठिन तपस्या द्वारा, कुछ अष्टांग योगपद्धति के अभ्यास द्वारा अथवा दिव्यज्ञान में उन्नति करने के लिए वेदों के अध्ययन द्वारा प्रबुद्ध बनते हैं।
***********************************
यज्ञ करने के भी हैं भिन्न-भिन्न मार्ग
जिसे अलग-अलग लोग अपनाते हैं।
कोई धन-सम्पत्ति का दान करके तो
कोई तप व अष्टांग योग से निभाते हैं।।

कुछ वेद-शास्त्रों का अध्ययन करके
उस निपुणता से यज्ञ निर्वाह करते हैं।
तो कुछ मनुष्य कठिन व्रत धारण कर
उसी से अपना यज्ञ सम्पन्न करते हैं।।

No comments:

Post a Comment