कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संग त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥ ११ ॥
योगीजन आसक्तिरहित होकर शरीर, मन, बुद्धि तथा इंद्रियों के द्वारा भी केवल शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संग त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥ ११ ॥
योगीजन आसक्तिरहित होकर शरीर, मन, बुद्धि तथा इंद्रियों के द्वारा भी केवल शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।
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कर्म तो हर कोई ही करता यहाँ
पर अंतर होता है भाव में सबके।
योगी लोग जो कर्म करते हैं तो
आसक्ति न होती मन में उनके।।
शरीर, मन, बुद्धि और इंद्रियों से
वे जो भी कर्म यहाँ पर करते हैं।
लक्ष्य आत्मा की शुद्धि भर होती
और कुछ भी इच्छा नही रखते हैं।।
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