Sunday, November 27, 2016

अध्याय-6, श्लोक-37

अर्जुन उवाच
अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः ।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥ ३७ ॥
अर्जुन ने कहा- हे कृष्ण! उस असफल योगी की गति क्या है जो प्रारम्भ में श्रद्धापूर्वक आत्म-साक्षात्कार की विधि ग्रहण करता है, किंतु बाद में भौतिकता के कारण उससे विचलित हो जाता है और योगसिद्धि को प्राप्त नहीं कर पाता?
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अर्जुन ने कहा भगवान से कि 
कुछ लोग प्रभु ऐसे भी होते हैं।
शुरुआत करते श्रद्धापूर्वक पर 
बाद में पथ से भटक जाते हैं।।

मार्ग से भटके योगी जीवन में 
आख़िर किस गति को पाते हैं?
आत्म-साक्षात्कार से भटक कर 
किस पथ और लक्ष्य वे जाते हैं?

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