गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥ २३ ॥
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥ २३ ॥
जो पुरुष प्रकृति के गुणों के प्रति अनासक्त है और जो दिव्य ज्ञान में पूर्णतया स्थित है, उसके सारे कर्म ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।
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जिसने प्रकृति के तीनों गुणों से
अपने आपको मुक्त कर लिया है।
जो पूरी तरह से ही दिव्य ज्ञान में
मन व बुद्धि सहित स्थित हुआ है।।
इसतरह जो मनुष्य अच्छी प्रकार
अपने कर्म का आचरण करते हैं।
वे मनुष्य भौतिक फल नही भोगते
उनके कर्म तो ब्रह्म में लीन होते हैं।
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