Wednesday, November 16, 2016

अध्याय-5, श्लोक-25

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः ।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥ २५ ॥
जो लोग संशय से उत्पन्न होनेवाले द्वैत से परे हैं, जिनके मन आत्म-साक्षात्कार में रत है, जो समस्त जीवों के कल्याणकार्य करने में सदैव व्यस्त रहते हैं और जो समस्त पापों से रहित हैं, वे ब्रह्मनिर्वाण (मुक्ति) को प्राप्त होते हैं।
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जग के सारे जंजालों से परे हैं जो 
सारी दुविधाएँ मिट चुकी जिनकी।
पाप का लेश मात्र भी नहीं होता 
आत्म-ज्ञान में रत है बुद्धि उनकी।।

प्राणियों के कल्याण के लिए ही  
जिनके समस्त कार्य हुआ करते हैं।
ऐसे ब्रह्म ज्ञानी मनुष्य एकदिन 
अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त होते हैं।।

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