विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥ १८ ॥
विनम्र साधु पुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक विद्वान तथा विनीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता व चाण्डाल को समान दृष्टि (समभाव) से देखते हैं।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥ १८ ॥
विनम्र साधु पुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक विद्वान तथा विनीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता व चाण्डाल को समान दृष्टि (समभाव) से देखते हैं।
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वास्तविक ज्ञान को जिनसे साध लिया
वह हर जगह परमात्मा को देख पाता।
वस्तु, प्राणी, ऊँच-नीच, अपना-पराया
सबके ही प्रति सहज समभाव हो जाता।।
वह तो सबको ही समान देखता है चाहे
सामने उसके ब्राह्मण हो या चाण्डाल।
गाय, कुत्ता जैसे छोटे पशु हो समक्ष या
सामने खड़ा हो हाथी जैसा पशु विशाल।।
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