Saturday, November 12, 2016

अध्याय-5, श्लोक-6

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥ ६ ॥
भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता। परंतु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है।
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हे महाबाहु! मन में भक्ति भाव न हो 
तो कर्मों का त्याग दुःख ही देता है।
ऐसा सूखा त्याग जीवन में कभी भी 
सुख की अनुभूति नही दे सकता है।।

लेकिन कोई अगर भक्ति में लगा है 
भगवान का उसे रहे स्मरण हर पल।
उसका तो निश्चित है प्रभु को पाना 
चाहे आज पाए या पाए वो कल।।

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