श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप ।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ ३३ ॥
हे परंतप! द्रव्ययज्ञ से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है।हे पार्थ! अंततोगत्वा सारे कर्मयज्ञों का अवसान दिव्य ज्ञान में होता है।
**************************************
हे परंतप अर्जुन! धन-सम्पदा का
दान भी यूँ तो यज्ञ कहलाता है।
लेकिन जो ज्ञान-यज्ञ होता है वो
द्रव्ययज्ञ से श्रेष्ठ माना जाता है।।
कर्मों से उत्पन्न होनेवाले ये सब
जिनते भी प्रकार के यज्ञ होते हैं।
हे पार्थ! अंततः वे सारे-के-सारे
दिव्य-ज्ञान में ही समाप्त होते हैं।।
No comments:
Post a Comment