Monday, November 14, 2016

अध्याय-5, श्लोक-13

सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी ।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्‌ ॥ १३ ॥
जब देहधारी जीवात्मा अपनी प्रकृति को वश में कर लेता है और मन से समस्त कर्मों का परित्याग कर देता है तब वह नौ द्वारों वाले नगर (भौतिक शरीर) में बिना कुछ किए कराये सुखपूर्वक रहता है।
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जब शरीर में रहनेवाला जीवात्मा
मन से कर्मों का त्याग कर देता है।
न कुछ करता और न ही करवाता
अपनी प्रकृति को वश में रखता है।।

ऐसी स्थिति में वह जीव सदा अपने
आत्म-स्वरूप में ही आनंद लेता है।
और इस नौ द्वार वाले नगर, देह में
बिना कुछ किए सुखपूर्वक रहता है।।

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