ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥ १० ॥
जो व्यक्ति कर्मफलों को परमेश्वर को समर्पित करके आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता है, वह पापकर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिसप्रकार कमलपत्र जल से अस्पृश्य रहता है।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥ १० ॥
जो व्यक्ति कर्मफलों को परमेश्वर को समर्पित करके आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता है, वह पापकर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिसप्रकार कमलपत्र जल से अस्पृश्य रहता है।
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जिस व्यक्ति ने कर्म फलों को
परमेश्वर को देना सीख लिया है ।
जिसने जीवन के सारे ही कर्म को
मोह ममता त्याग कर किया है।।
उसे संसार में रहते हुए भी कभी
पाप प्रभावित नहीं कर सकता।
जैसे जल में रहता कमल सदा
पर पत्तों तक जल नहीं पहुँचता।।
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