Monday, November 14, 2016

अध्याय-5, श्लोक-15

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः ।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ॥ १५ ॥
परमेश्वर न तो किसी के पापों को ग्रहण करता है, न पुण्यों को। किंतु सारे देहधारी जीव उस अज्ञान के कारण मोहग्रस्त रहते हैं, जो कि वास्तविक ज्ञान को आच्छादित किए रहता है।
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सबके शरीर में रहने वाले परमात्मा 
जीव के कर्मों से अलग ही है रहता।
न वह पाप कर्मों को ग्रहण करता हैं 
न ही पुण्य कर्मों में शामिल है होता।।

किंतु जीवात्मा तो अज्ञान के कारण 
सदा ही मोह जाल में फँसा रहता है।
और मोह इन्हीं परदों के कारण ही  
वास्तविक ज्ञान उससे ढँका रहता है।।

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