Friday, October 7, 2016

अध्याय-2, श्लोक-18

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥ १८ ॥
अविनाशी, अप्रमेय तथा शाश्वत जीव के भौतिक शरीर का अंत अवश्यम्भावी है। अतः हे भरतवंशी! युद्ध करो।
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आत्मा का कभी नाश नही होता 
ना ही उसको मापा जा सकता।
कभी भी नही मरती है ये  आत्मा 
है  शास्त्र इसे शाश्वत बतलाता।।

पर शरीर का तो अंत है निश्चित 
उसका तुम इतना मोह न धरो।
हे भरतवंशी!त्यागकर मोह अब 
आओ आगे और ये  युद्ध करो।।


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