यदि उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥ २४ ॥
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥ २४ ॥
यदि मैं नियतकर्म न करूँ तो ये सारे लोग नष्ट हो जायँ। तब मैं अवांछित जनसमुदाय (वर्णसंकर) को उत्पन्न करने का कारण हो जाऊँगा और इस तरह सम्पूर्ण प्राणियों की शांति का विनाशक बनूँगा।
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यदि मैं नियत कर्मों को न करूँ तो
सारे लोग इसका अनुसरण करेंगे।
कर्त्तव्य पालन न करने के कारण
वे सब अपने पथ से भ्रष्ट हो जाएँगे।।
तब उत्पन्न होगी अवांछित संताने
जिसका कारण भी मैं कहलाऊँगा।
इससे भंग होगी समाज की शांति
मैं ही उसका भी कारण बन जाऊँगा।।
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