यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके ।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥ ४६ ॥
एक छोटे से कूप का सारा कार्य एक विशाल जलाशय से तुरंत पूरा हो जाता है। इसीप्रकार वेदों के आंतरिक तात्पर्य जाननेवाले को उनके सारे प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं।
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तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥ ४६ ॥
एक छोटे से कूप का सारा कार्य एक विशाल जलाशय से तुरंत पूरा हो जाता है। इसीप्रकार वेदों के आंतरिक तात्पर्य जाननेवाले को उनके सारे प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं।
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जिसे उपलब्ध विशाल जलाशय
वो फिर कुएँ के पास क्यों जाए।
कुएँ से होनेवाले सारे कार्य उसके
जलाशय से शीघ्र सिद्ध हो जाए।।
जिसने जान लिया है वेदों का सार
उसे फिर कर्मकांड से क्या प्रयोजन।
ब्रह्म तत्त्व का जिसे ज्ञान हो चुका
तो फिर क्यों करे व्यर्थ आयोजन।।
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