Tuesday, October 18, 2016

अध्याय-2, श्लोक-72

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥ ७२ ॥
यह आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नहीं होता। यदि कोई जीवन के अंतिम समय में भी इस तरह स्थित हो, तो वह भगवद्धाम में प्रवेश कर सकता है।
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ईश्वरीय जीवन का है पथ यह 
अध्यात्म के रस में डूबा हुआ है।
जिसने भी चुना इस जीवन को 
जग से नही वो मोहित हुआ है।।

इस पर चलने में कभी देर न होती 
यह सदा सर्वदा ही खुला रहता है।
अंतिम समय में भी अगर अपना ले 
तो भी पथिक परम धाम पाता है।।


******गीता का सार नाम का दूसरा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******

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