Saturday, October 22, 2016

अध्याय-3, श्लोक-9

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ॥ ९ ॥
श्रीविष्णु के लिए यज्ञ रूप में कर्म करना चाहिए, अन्यथा कर्म के द्वारा इस भौतिक जगत् में बंधन उत्पन्न होता है। अतः हे कुंतीपुत्र! उनकी प्रसन्नता के लिए अपने नियत कर्म करो। इस तरह तुम बंधन से सदा मुक्त रहोगे।
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श्रीविष्णु के लिए जो कर्म वही यज्ञ 
बाक़ी सब तो बंधन के कारण होते हैं।
हर कर्म का होता है निश्चित फल जो 
जन्म-मरण का बंधन उत्पन्न करते हैं।।

हे कुंतीपुत्र! छोड़ कर फल की इच्छा 
जब यज्ञ समझकर अपना कर्म करोगे।
तो तुम अपना नियत कर्म करते हुए भी 
कर्म बंधन से भी सदा मुक्त ही रहोगे।।

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