इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥ ४० ॥
इंद्रियाँ, मन तथा बुद्धि इस काम के निवासस्थान हैं। इनके द्वारा यह काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढक कर उसे मोहित कर लेता है।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥ ४० ॥
इंद्रियाँ, मन तथा बुद्धि इस काम के निवासस्थान हैं। इनके द्वारा यह काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढक कर उसे मोहित कर लेता है।
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जीव की इंद्रियाँ, मन और बुद्धि को
कामनाओं ने अपना घर बनाया है।
इनके भीतर बैठकर ही उसने फिर
जीव को इस जग में भटकाया है।।
पहले जीव के वास्तविक ज्ञान को
कामनाएँ आच्छादित कर देती हैं।
ज्ञान के आच्छादित होने के बाद
जीव को सदा मोहग्रस्त रखती हैं।।
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