नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥ ६६ ॥
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥ ६६ ॥
जो कृष्णभावनामृत में परमेश्वर से सम्बंधित नही है उसकी न तो बुद्धि दिव्य होती है और न ही मन स्थिर होता है जिसके बिना शांति की कोई सम्भावना नहीं है। शांति के बिना सुख हो भी कैसे सकता है?
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भगवान से जिसने नाता नही जोड़ा
उसकी बुद्धि कभी दिव्य नही होती।
मन भी उसका चंचल ही रहता और
मति कभी उसकी स्थिर कहाँ होती।।
ऐसे अस्त-व्यस्त जीवन में कभी भी
शांति की होती कोई सम्भावना नही।
शांति के बिना सुख आए जीवन में
आज तक कभी हुआ है ऐसा कहीं?
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